Wednesday, 10 October 2012

कुछ बाकि हैं .

"सब कुछ मिल गया हे उनसे..फ़िर भी दिल कहेता हे ..कुछ बाकि हैं .

!गुंजती हे..सरगम मगर..कोई सन्नाटा बाकी हे..!

कि थीं जो शरारत उनसे.. अब लगती 'गलती'सी है.!

उसी गलती को छुपाना..अब बनी मजबुरी सी है..!

जो छूपाये ना छुपे...वो दर्द ये दिल जी रहा है..!

अब तो बढती दुरी का एहसास भी लम्हा लम्हा मर रहा है...!

गम के अजीब निशान उठें है दिलपे..

जिस से मरहम भी मात खा रहा है..!

अब बस ऐसे हि जिये जा रहे है हम..

जिने के लिये अब कौन जी रहा है..?"

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